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कविता

दोस्त को लिखा खत

अभिज्ञात


बहुत दिनों बाद एक भूले हुए एक दोस्त का खत मिला
मैं अरसे तक उसे जेब में लिए घूमता रहा
सोचता रहा कि कल
बस कल ही लिख दूँगा उसका
कोई प्यारा सा एक जवाब
फिर मैं बार-बार भूलता रह और इस काम को
याद करता रहा
एक दिन आखिर निकाल हीं लिया समय और
लिख डाला खत
खत के जवाब में ज्यादा यह लिखा कि क्यों और
आखिर क्यों देर हुई खत के जवाब में
फिर मैं ने उसे सहेज कर रखा अपनी जेब में
कि उसे कल सुबह ही सबसे पहले कर दूँगा पोस्ट
और फिर अरसे तक मैं उस खत को नहीं भेज सका
फिर देर होती गई और यह लगा कि
बेकार और बेमानी है इतने दिनों बाद किसी खत
का जवाब देना
कितने दिन बाद यह जोड़ने की जहमत भी नहीं उठाते बनी

अब बरसों बाद मेरे जेहन में टँगा है वह अनभेजा खत
क्या करूँ उस जवाब का जो मैंने
खत में लिखा था
और पता नहीं क्यों नहीं मिल सका मेरे दोस्त को
मेरे चाहने के बावजूद।


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